इस्लाम धर्म को मानने वाले रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिनों बाद बकरीद मनाते हैं। इसे ईद-उल-जुहा भी कहते हैं।
निर्दोष जीवो को मारने से भगवान कभी खुश नहीं हो सकते है ।
जिस तरह अगर आपके बेटे या बेटी को कोई हलाल करे तो क्या भगवान खुश होगा नहीं क्योंकि जानवर को भी मार कर हलाल करते है तो क्या उनकी आत्मा नहीं दिखती होगी ।
मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है बकरीद।इस दिन मुसलमानों के घर में कुछ चौपाया जानवरों की कुर्बानी हजरत इब्राहिम ने शुरू की परंपरा इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से हजरत इब्राहिम एक थे।इन्हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।
जब हज़रत इब्राहिम अल्लाह की भक्ति कर रहे थे तो उनकी भक्ति से खुश होकर उनकी दुआ को कबूल किया था जिसके बाद अल्लाह ने उनकी परीक्षा ली। इस परीक्षा में अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती और प्यारी चीज की बली देने की मांग की।
जब अपने बेटे की बली दे रहे थे हज़रत इब्राहिम
हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह की बात मान कर अपनी सबसे प्यारी चीज यानी की अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का निर्णय कर लिया। इसके बाद जब हज़रत इब्राहिम अपने बेटे की बली देने जा रहे थे इतने में ही अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक बकरे को रख दिया जिसके बाद जो परीक्षा अल्लाह इब्राहिम की ले रहे थे वो सफल हो गया और इस दिन को बकरा ईद के रुप में मनाया जाने लगा।
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हमेसलमानों को समझने की जगह इस्लामिक धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।
आइए हम मिलकर इस्लाम धर्म और उनकी मान्यताओं पर एक नजर डालते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं ।
इस्लाम का सबसे विश्वसनीय धार्मिक ग्रंथ पवित्र कुरान शरीफ/मजीद है और मुसलमानों का मानना है कि अल्लाह केवल वह ईश्वर/खुदा है, जिसने कुरान शरीफ का ज्ञान दिया है। लेकिन सबूत साबित करते हैं कि कुरान शरीफ का ज्ञानदाता अल्लाहताला नहीं है। वह किसी अन्य भगवान के बारे में उल्लेख कर रहे हैं जिसकी जानकारी कोई बाखबर/इलमवाला/तत्त्वदर्शी संत प्रदान करेंगे।💯💯💯💯💯
सतगुरु रामपाल जी महाराज विश्व में एक मात्र संत हैं जो की आज इस धरती पर संत रामपाल जी महाराज ने सभी धार्मिक ग्रंथो को खोल कर कई प्रमाण दिए है देखे 👇👇👇
"इच्छा रूपी वहां नहीं रह्यो,
उल्ट मोहम्मद महल पठाया, गुज़ बिरज एक कलमा ले आया।
रोज़ा बंग नमाज़ दई रे, बिस्मिल की नहीं बात कही रे।।"
उन्होंने हज़रत मोहम्मद को अपना ज्ञान समझाने की कोशिश की। लेकिन उनके पास पृथ्वी पर तब तक बहुत सारे अनुयायी थे और महिमा हो गयी थी, इसलिए वह सहमत नहीं हुए। उन्होंने हज़रत मोहम्मद को वापस उनके शरीर में छोड़ा। कलमा, रोज़ा और नमाज़ बेशक हज़रत मोहम्मद ने दिए लेकिन उन्होंने कभी भी बिस्मिल(बलि देने) की बात नहीं की।👇👇👇
क़ुरत फुरकान 25, आयत-52 इस बात का प्रमाण देता है कि अल्लाह ही वह 'एक' ईश्वर है।
“फला-तूतिईल-काफिरिन-व-जाहिदुम-बिहि-जिहादन-कबीरन”
यहां स्पष्ट रूप से 'कबीरन' शब्द वर्णित है। हम इसे 'कबीर/ कबीरा/ कबीरन/ खबीरा/ खबीरन' कह सकते हैं। इस आयत से यह स्पष्ट है कि ब्रह्मांड का निर्माता, सर्वशक्तिमान अल्लाह कबीर है।
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